बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

दीनन दुख:हरन देव सन्तन हितकारी।
अजामील गीध व्याध, इनमें कहो कौन साध ।
पंछी को पद पढ़ात, गणिका-सी तारी ।
ध्रुव के सिर छत्र देत, प्रहलाद को उबार लेत ।
भक्त हेत बांध्यो सेत, लंक-पुरी जारी ।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दु:शासन चीर खस्यो ।
सभा बीच कृष्ण कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने हरि आये गये, बसनन आरूढ़ भये ।
सूरदास द्वारे ठाड़ौ आंधरों भिखारी ।
बसंत का आगमन ज्यों प्रकृति तरुणाई छोड़ युवा हो गई
आप सबको शुभ बसंत

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

मेरा प्रथम लेखन ब्लाग पर

आज मैं बहुत प्रफुल्लित हूँ मेरा अपना ब्लाग है और इस पर मैं स्वतंत्रता पूर्वक आपनें उद्गार रख सकता हूँ
शुक्रिया गूगल