दीनन दुख:हरन देव सन्तन हितकारी।
अजामील गीध व्याध, इनमें कहो कौन साध ।
पंछी को पद पढ़ात, गणिका-सी तारी ।
ध्रुव के सिर छत्र देत, प्रहलाद को उबार लेत ।
भक्त हेत बांध्यो सेत, लंक-पुरी जारी ।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दु:शासन चीर खस्यो ।
सभा बीच कृष्ण कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने हरि आये गये, बसनन आरूढ़ भये ।
सूरदास द्वारे ठाड़ौ आंधरों भिखारी ।
अजामील गीध व्याध, इनमें कहो कौन साध ।
पंछी को पद पढ़ात, गणिका-सी तारी ।
ध्रुव के सिर छत्र देत, प्रहलाद को उबार लेत ।
भक्त हेत बांध्यो सेत, लंक-पुरी जारी ।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दु:शासन चीर खस्यो ।
सभा बीच कृष्ण कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने हरि आये गये, बसनन आरूढ़ भये ।
सूरदास द्वारे ठाड़ौ आंधरों भिखारी ।